लेखनी कहानी -05-Jan-2023 (21) थाली का बैंगन ( मुहावरों की दुनिया )
शीर्षक = थाली का बैंगन
राधिका और मानव तो सौ रहे थे, लेकिन बाहर से आ रही मन मोह लेने वाली चिड़ियों की आवाज़ ने आशीष की नींद खोल दी, आज इतने दिनों बाद उसे बहुत अच्छा लग रहा था। एक सुकून सा महसूस हो रहा था उसे
खिड़की से बाहर का मौसम बेहद सुहाना लग रहा था, जिसे देखने से आशीष खुद को रोक नही सका, खिड़की से अपने गांव को देख उसे अपना बचपन याद आ गया, खिड़की से बाहर देखने पर हर एक पुरानी याद चलचित्र की भांति उसके सामने चल रही थी
तब ही उसे कुछ महसूस हुआ अपने कांधे पर, पीछे मुड़ा तो देखा राधिका खड़ी थी
"अरे!तुम उठ गयी, " आशीष ने कहा
"हाँ, आँख खुली तो देखा तुम बाहर देख रहे थे खिड़की के " राधिका ने कहा
"हाँ, अचानक मेरी आँख खुल गयी, बाहर से आ रही परिंदो की आवाज़ से," आशीष ने कहा
"आशीष एक बात कहू, तुमने अच्छा किया कि तुम आ गए, मुझे बहुत अच्छा लगा," राधिका ने कहा
आशीष के पास कोई जवाब नही था इस बात का इसलिए उसने उसे अपने सीने से लगा लिया और मुस्कुराने लगा
थोड़ी देर बाद सब लोग आँगन में बैठ गए थे, राधिका और सुष्मा जी रसोई घर में नाश्ता बना रही थी और बाहर सिर्फ मानव, आशीष और दीन दयाल जी बैठे थे
दोनों चाह कर भी एक दुसरे से बात नही कर पा रहे थे, दोनों एक दुसरे की तरफ देखते और नज़र नीची कर लेते
तब ही आशीष ने पूछा " पिता जी! खेतों पर काम केसा जा रहा है, "
"सही जा रहा है " दीन दयाल जी ने कहा
"तुम बताओ, तुम्हारी डॉक्टरी केसी जा रही है, अब तो शहर में रहकर बहुत बड़े डॉक्टर बन गए होगे " दीन दयाल जी ने कहा
आशीष समझ गया था, कि उसके पिता क्या कहने की कोशिश कर रहे है, वो कुछ और कहता तब ही सुष्मा जी आ गयी और बोली " बाकी बाते बाद में, पहले चाय पीते है और नाश्ता करते है, देख आशीष आज मैंने तेरे पसंद का नाश्ता बनाया है, कम तेल का "
सब लोग नाश्ता कर रहे होते है, कि दरवाज़े पर किसी की दस्तक होती है
कौन आया होगा? दीन दयाल जी ने कहा
"मैं देखता हूँ जाकर " आशीष ने कहा और दरवाज़ा खोलने चला गया
दरवाज़ा खोलते ही, सामने खडे शख्स को देख आशीष के चेहरे पर मुस्कान आ गयी और वो बोला " अरे! अनुज तू, कितना बदल गया है "
"हाँ, मैं ही हूँ, मैं तो नही बदला तू बदल गया है, कितने सालों बाद दिखाई दिया है तू " अनुज ने कहा
"चल अंदर आ, मेरे आने का कैसे पता चला " आशीष ने पूछा
"बस चल ही गया, और देख मैं आ भी गया " अनुज ने कहा
"चल अब गुस्सा थूक अंदर आ बैठ कर बाते करते है " आशीष ने कहा और उसे अंदर ले आया
अनुज, आशीष के बचपन का दोस्त था, सब उसे अच्छे से जानते थे, सिवाय राधिका और मानव के, अनुज भी आगे पढ़ना चाहता था लेकिन उसके पिता की अचानक मौत और उसके चाचा का इस तरह उसके खेत और ज़मीन पर कब्ज़ा कर लेने के कारण बेचारा कोट कचेहरी में ही फ़स कर रह गया था
"आओ, आओ अनुज, कितने दिनों बाद चककर लगाया तुमने, आज दोस्त आया है तब ही आये हो " सुष्मा जी ने कहा
"नही,, नही काकी ऐसी कोई बात नही है, बस फुरसत नही मिल रही थी, बीवी बच्चों का ही होकर रह गया हूँ, जो थोड़ा बहुत समय मिलता है वो कोर्ट कचेहरी के चककर लगाने में चला जाता है, न जाने कब जान छूटेगी मेरी इन सब ताम झमेले से, अब तो लगता है, हार मान लू और सब कुछ चाचा को ही दे दू, भगवान ऐसे रिश्तेदार किसी को न दे, जो दूसरों की मजबूरी में अपना फायदा ढूंढे " अनुज ने कहा
"ठीक कहा बेटा, तुम्हारा चाचा इस तरह का निकलेगा मैंने सोचा नही था, अपना हिस्सा तो लिया ही लिया अपने बड़े भाई का हिस्सा भी खाने के चककर में है, बेटा हार मत मानना, एक दिन तुम्हे इंसाफ मिल कर रहेगा " दीन दयाल जी ने कहा
"जी काका, बस इसी उम्मीद पर बैठा हूँ, लेकिन जो भी वकील करता हूँ, थाली का बैंगन ही निकलता है, अब तो बस भगवान का ही सहारा है, वही मुझे इंसाफ दिला सकते है " अनुज ने कहा
मानव जो की ध्यान लगा कर उसकी बात सुन रहा था, जैसे ही उसने थाली का बैंगन सुना तो बोल पड़ा " दादा जी माफ करना, बड़ो के बीच बोल रहा हूँ, ये थाली का बैंगन क्या होता है "
उसके इस तरह के प्रश्न पूछने के अंदाज पर सबको हसीं आ गयी,
"क्या हुआ, दादा जी? मैंने कुछ गलत पूछा?" मानव ने पूछा
नही, नही बेटा,, हम तो बस यूं ही मुस्कुरा दिए थे, आओ मैं बताता हूँ, तुम्हे थाली का बैंगन का अर्थ
जैसा की तुम्हारे अनुज चाचा ने बताया की ये जो भी वकील करते है, वो थाली का बैंगन निकलता है, और इनको न्याय नही मिल रहा है, इस बात से तात्पर्य ऐसे लोगो से है, जो अपनी बात पर, अपने पक्ष पर खड़े नही रहते है, यानी की इनके द्वारा किये जाने वाले वकील इनकी बात सुनने और इन्हे न्याय दिलाने के बजाये इनके चाचा के हाथो बिक जाते है, और अपनी बात से मुकर जाते है, ऐसे लोगो का कोई दीन, धर्म ईमान कुछ नही होता ऐसे ही लोगो के लिए, इस मुहावरें का इस्तेमाल किया जाता है, जिस प्रकार थाली में रखा बैंगन थाली के जरा से ढोलने पर कभी इधर तो कभी उधर हो जाता है, ठीक इसी तरह की प्रवर्ती कुछ मनुष्यों में भी होती है, फिर चाहे वो महिला हो या पुरुष इस बात से कोई फर्क नही पड़ता है,
अब तुम्हे समझ आ गया होगा, थाली का बैंगन मुहावरें का अर्थ, दीन दयाल जी ने कहा उसे अपनी गोदी में बैठा कर
"जी दादा जी समझ गया, " मानव ने कहा
उसके बाद सब लोगो ने चाय का आंनद लिया और खूब सारी बाते की, अनुज आशीष के साथ बाहर चला गया था
मुहावरों की दुनिया हेतु
पृथ्वी सिंह बेनीवाल
10-Feb-2023 08:52 AM
👌👌
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Gunjan Kamal
09-Feb-2023 06:59 PM
👌👌👌
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डॉ. रामबली मिश्र
09-Feb-2023 08:33 AM
शानदार
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